भंवरा

वो गुन-गुन करता
भंवरा सा
हर कली पे वो 
मंडराता है,
हर कली पे रहमत है उसकी 
हर कली को भी तो 
वो खिलाता है,
मैं दूर खड़ी 
मजबूर कली,
एक गुच्छे के बोझ में ढली
न कुछ कहती
न कुछ सुनती,
ख़्वाब किसी 
भंवरे के बुनती

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