अपना सा अजनबी (preetsinghsr)

 "अपना सा अजनबी "

अचानक ज़िन्दगी में  कभी ,

एक अन्जान सा शख़स आता है,

जो दोस्त  भी नही,

हमसफ़र भी नही,

फिर भी दिल को बहुत ,

बहुत भाता है,

ढेरो बाते होती है उस से,

हज़ारों दुख सुख भी बंटते हैं,

जो बाते किसी से नहीं करते थे ,

वो भी हम उस से करते हैं ,

है तो वो अनजाना सा ,

पर दिल को बहुत वो, जाना पहचाना सा लगता है ,

कोई रिश्ता नहीं है उससे ,

फिर भी उसकी हर बात मानने का दिल करता है ,

कोई हक नहीं है उसका हमपर ,

फिर भी उसका हक जताना, हमको अच्छा लगता है ,

जब कुछ भी सुनने का मन ना हो तब भी ,

उसको सुनना अच्छा लगता है ,

अजीब बात है ,

कोई रिश्ता नहीं है उससे ,

फिर भी वो ,

अपनो से भी ज्यादा अपना लगता है ,

ज़िन्दगी है बहुत उदास सी ,

बस झमेले ही झमेले हैं ,

शायद खो ही देते हम खुद को ,

पर अब उसके कारन ,

जीने का दिल करता है ,

ऐसे ही बिना किसी बात पे ,

बस यूँ ही हंसने का दिल करता है ,

कोई नहीं हमारी चाहत ,

कि हम रिश्ता कोई बनाये उससे ,

ना कोई है उसकी ख्वाहिश ,

कि वो किसी बन्धन में बँध जाये हमसे ,

फिर भी साथ एक दुजे का ,

मन को बहुत भाता है ,

कभी कभी सोचतi हूँ,

शायद इसी को रूह का रिश्ता कहतें हैं ,

जैसे पिछले जन्म का छूटा साथ कोई ,

इस जन्म में  रूह का साथी बनके मिलता है ,

अजीब सा रिश्ता है ,

जिसे कोई नाम देने का दिल नहीं करता है ,

पर वो मेरी ज़िन्दगी में  एक अहम जगह रखता है ,

ऐसे लगता है जैसे कुछ पवित्र सा है, प्यारा सा है ,

मेरे दिल का एक कोना जैसे ,

उस  ही की मुकददस् सी खुशबू से महका करता है ,




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